Friday, January 25, 2008

शक्ति के साधन (रहस्य)

आध्यात्मिकता का तीसरा मंत्र है-शक्ति संचय । निर्बलता एक बहुत बड़ा पातक है कमजोरी में एक ऐसा आकर्षण है कि उससे अनुचित लाभ उठाने की सबकी इच्छा हो जाती है ।
"दुर्बल मनुष्य निर्दयी हो जाते हैं - अपने प्रति,आश्रितों के प्रति और सबके प्रति ।"
शक्ति का प्रयोग रोकने के लिए शक्ति का प्रदर्शन जरुरी है । हम अपने शारीरिक बौद्धिक आत्मिक बल को इतना बढ़ा लें कि उसे देखते ही आक्रमणकारी के हौसले पस्त हो जाएँ ।

शक्ति के साधन
1.स्वास्थ्य-
शरीर और मन का अपने सुख स्वरूप में स्थित रहना ही स्वास्थ्य है । यह सब शक्तियों का मूल है,इसके बिना सभी शक्तियाँ निरर्थक हैं । अच्छा स्वास्थ्य तन ,मन और धन तीनों को साधने के लिए आवश्यक है । सादा जीवन,सीधा और सरल प्राकृतिक जीवन क्रम और संयम अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं ।

2.विद्या-
सांसारिक जानकारी शिक्षा है और मनुष्यता के कर्तव्य और उत्तरदायित्व को हृदयंगम करना विद्या है । ज्ञान साधना का प्रथम उपाय जिज्ञासा है । तर्क-वितर्क, चिन्तन-मनन,लगन और विवाद करने में रस आना ज्ञान प्राप्ति के आवश्यक शर्त् हैं ।
अपनी जानकारी की अल्पता को समझना और अधिक मात्रा में एवं वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने की निरंतर चाह रखना व प्रयत्न करना मनुष्य को ज्ञानवान बनाता है ।

3.धन-
धन उपार्जन की अनेक प्रणालियों में से व्यापार,उत्पादन एवं निर्माण की प्रणाली सबसे उत्तम हैं । विश्वस्तता, मधुर व्यवहार. परिश्रम, ईमानदारी,अच्छी चीज़,वायदे की पाबन्दी,सजावट, विज्ञापन एवं मितव्ययिता के आधार पर हर व्यक्ति अपने व्यवसाय में वृद्धि कर सकता है।
धन को विवेकपूर्वक कमाने और विचारपूर्वक खर्च करने से वास्तविक लाभ प्राप्त किया जा सकता है ।

4.व्यवस्था-
जो व्यक्ति समुचित प्रबन्ध कर सकता है वह बहुत बड़ा जानकार है ।
" निरालस्यता, जागरुकता, स्वच्छता, नियमितता,समय की पाबन्दी, मर्यादा का ध्यान रखने से मनुष्य के विचार और कार्य व्यवस्थित होने लगते हैं और वह धीरे धीरे अपने क्षेत्र में एक कुशल व्यवस्थापक बन जाता है ।"

5.संगठन-
वर्तमान समय में संघ की शक्ति,संगठन,एकता को प्रधान शक्ति माना गया है ।
अच्छे मित्रों का, सच्चे मित्रों का समूह एक दूसरे की सहायता करता हुआ आश्चर्यजनक उन्नति कर जाता है । जिनके साथ दस आदमी हैं वह शक्तिशाली है । समानता के आधार पर परस्पर सहायता करनेवाला समूह बनाना चाहिए और उसे मजबूत करना चाहिए । आप सामूहिक प्रयत्नों में दिलचस्पी लीजिए । अपने जैसे विचारों वाले लोगों की एक मित्र मंडली बना लीजिए और खूब प्रेमभाव बढ़ाइए ।

6.यश-
जिसका यश है उसी का जीवन, जीवन है ।
जो व्यक्ति अपने अच्छे आचरण और अच्छे विचारों के कारण,सेवा,साहस,सच्चाई के कारण लोगों की श्रद्धा प्राप्त कर लेता है उसे बिना माँगे अनेक प्रकार के प्रकट और अप्रकट सहायता प्राप्त होती रहती है ।
"प्रतिष्ठा आत्मा को तृप्त करने वाली दैवी सम्पत्ति है ।" सुख्याति द्वारा जिनने दूसरों के हृदय को जीत लिया है इस संसार में यथार्थ में वे ही विजयी हैं ।

7. शौर्य या पराक्रम -
साहस बाजी मारता है तथा साहसी की ईश्वर सहायता करता है।
आपत्ति में विचलित नहीं होना,संकट के समय धैर्य रखना,विपत्ति के समय विवेक को कायम रखना मनुष्य की बहुत बड़ी विशेषता है । स्वाभिमान, धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए मनुष्य को बहादूर होना आवश्यक है ।

8.सत्य -
सत्य इतना मजबूत है कि इसे किसी भी हथियार से नष्ट नहीं किया जा सकता ।
'सत्य मेव जयते' का अर्थ ही है कि सत्य की ही विजय होती है झूठ की नहीं । कभी कभी असत्य की विजय होती हुई दिखाई देती है ऐसी स्थिति में सत्य कुछ समय के लिए आवरण में ढंका हुआ रहता है परन्तु जब सत्य प्रकट होता है तो असत्य और सत्य का भेद स्पष्ट हो जाता है ।
अध्यात्म का सार 'सत्य' है । संसार का कोई भी धर्म सत्य को नकार नहीं सकता । अध्यात्मविज्ञान का लक्ष्य सत्य का अन्वेषण है । सत्य ही ईश्वर है, प्रेम ही ईश्वर है । जिसके विचार और कार्य सच्चे हैं वह सं सार का सबसे बड़ा बलवान है उसे कोई नहीं हरा सकता; सत्यतापूर्ण हर एक कार्य के पीछे दैवी शक्ति होती है,उस पर चोट पहुँचानेवाले को स्वयं हि परास्त् होना पड़ता है ।
जो सत्यनिष्ठ है, मन, वचन और कर्म से सत्यपरायण रहते हैं उनके बल की किसी भी भौतिक बल से नहीं की जा सकती ।
सत्य परायण के मुँह से निकले वचन को प्रकृति स्वयं पूरा करती है ।

1 comment:

आनंद said...

प्रकाश जी,

इस भ्रम और दुविधा भरे माहौल में बुनियादी बातों को लेकर चलती आपकी पोस्‍ट बड़ा सुकून देती है। जारी रखें। शुभकामनाएँ।