Wednesday, January 30, 2008

संत कबीर अमृतवाणी 04

मैं भी भूखा न रहूँ,साधु न भूखा जाय॥
महानुभाव,
सद्गुरु कबीर साहब कहते हैं कि हे परमपिता परमेश्वर मुझे कम से कम इतना तो जरुर देना जिससे कि मेरी अनिवार्य आवश्यकताओं कि पूर्ति हो सके, मैं साधु-संतों की सेवा कर सकूँ और अतिथियों का सत्कार कर सकूँ ।
यहाँ कबीर साहब ईश्वर से धन दौलत , सोने-चाँदी की कामना नहीं कर रहे हैं । प्रकृति का यह नियम तो आप जानतेहैं कि हमें उससे ज्यादा नहीं मिलता जितना कि हम कामना करते हैं और प्रयास करते हैं ।
वर्तमान संदर्भ में आप इस विचार का हँसी उड़ा सकते है कि जहाँ सर्वत्र धनवान बनने की होड़ मची हुई है तो यहाँ केवल अनिवार्य आवश्यकता पर ही बात खत्म हो रही है । ऐसा नहीं है यह जीवन की कठोरतम सच्चाई है कि ये आलीशान भवन,हीरे-मोतियों का ढेर यहीं रह जानेवाला है, कुछ भी साथ जाने वाला नही है ,अंत समय में कुछ भी काम आनेवाला नहीं है ।

यदि ऐसा है तो भौतिकवाद को समाप्त हो जाना चाहिए । मेरे भाई ऐसा नहीं है ,मैं पुनः निवेदन करना चाहूँगा कि कबीर दास जी केवल भोजन प्राप्त करने तक सीमित नहीं हैं , वे साधु संतों की सेवा करना चाहते हैं , दूसरी बात अतिथि सत्कार में कोई कमी नहीं करना चाहते । कहा गया है कि- साधु-संत की सेवा करने से सत्संग का लाभ मिलता है जो कि कठोर तपस्या के पुण्यलाभ से भी बढ़कर है ।

आप् सोच रहे होंगे कि कहाँ आज खुद का गुजारा चलाना मुश्किल है यहाँ साधु सेवा की बात कही जा रही है-ऐसा नही है-वर्तमान संदर्भ में साधु संत का अर्थ उन्नति का मार्ग बतानेवाला,भलाई का मार्ग बतानेवाला है ।यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि जब भी हमारे घर में संतों का आगमन हुआ है घर के वातावरण में सुखद बदलाव आया है । मैं मानता हूँ कि ऐसा आपके साथ भी हो सकता है ।

परिवार और बच्चों में अच्छे संस्कार् विकसित करने के लिए धार्मिक कार्यक्रमों में समय लगाना आवश्यक है । यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो ये और कहीं से मिलने वाला नहीं है । टी.वी.जैसे माध्यम अच्छे संस्कार की तुलना में बुरे संस्कार ही अधिक फैला रही हैं । सत्संग या धार्मिक कार्यक्रमों में सैकड़ों, हजारों लोगों की विचार तरंग वातावरण को अधिक प्रभावित करती है तथा यह अधिक लाभदायक है ।
"बच्चों को पैसे की नहीं आपके प्यार और समय की आवश्यकता है।"
आपका प्यार और उनके साथ बिताया गया समय धन की कमी महसूस नहीं होने देगा, उन्हें अच्छे ढंग से शिक्षित किया जा सकता है।
रॉबर्ट टी.कियोसाकी के अनुसार-"धन एक मानसिक स्थिति है । धन कमाना महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह महत्तवपूर्ण है कि धन कितने समय तक आपके पास रहता है ।"
"जब लोगों के पास ज्यादा पैसा आ जाता है तो वे सोचते हैं कि उनका आई.क्यू. बढ़ गया है । वे दंभी हो जाते हैं और मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगते हैं ।"
"शिक्षा में किया गया निवेश सर्वश्रेष्ठ निवेशों में से एक है ।"
भारतीय दर्शन -
"दान करने से धन शुद्ध होता है ।"
"अतिथि जिसका अन्न ग्रहण करते हैं उनके दोष दूर हो जाते हैं ।"
पाश्चात्य साहित्यकार फ़्रान्सिस् बेकन(सोलहवीं सदी)
के अनुसार- “Of great riches there is no real use, except it be in the distribution; the rest is but conceit.”
“Seek not proud riches, such as thou mayest get justly, use soberly, distribute cheerfully, and leave contentedly.”
"मनुष्य अपने धन को अगली पीढ़ी के लिए या लोगों के लिए छोड़ जाता है । परन्तु यह उत्तम होगा कि वह दोनों में बराबर हो ।"
सुप्रसिद्ध वक्ता शिव खेड़ा का यह कथन ध्यान में रख्ने लायक है कि "हमें हर चीज़ कि कीमत चुकानी पड़ती है ।"
यदि हम अपने उत्तरदायित्व पूरा करते हैं तो उसकी कीमत चुकाकर अच्छे फल प्राप्त करते हैं या उससे भागते हैं तो भी उसका कीमत चुकाने के साथ-साथ बुरा फल पाने के लिए तैयार रहना चाहिए ।
अन्त में मैं कहना चाहूँगा कि धन कमाना आवश्यक है परन्तु धन के पीछे पूरा जीवन बिता देना ठीक नहीं है । हमें कुछ समय आत्मकल्याण के लिए बचाना आवश्यक है ।

1 comment:

cadiezaccardo said...

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