Saturday, February 2, 2008

कर्ज़ से मुक्ति

आज कर्ज़ का दूसरा अर्थ हो गया है मौत। हम आए दिन् अखबारों में पढ़ते हैं और दूरदर्शन में देखते रहते हैं कि लोग किसान ,मजदूर व अन्य लोग बड़ी संख्या में कर्ज़ के दबाव से छुटकारा पाने मौत को गले लगा लेते हैं। यह और गहरी पीड़ादायक तब बन जाती है जब आदमी सपरिवार आत्महत्या कर लेता है। 'कर्ज़' आज की बहुत भयानक समस्या बन गया है जो शासकीय अशासकीय संस्थानों की धन लोलुपता को व्यक्त करता है। अनेक वित्तीय संस्थानों ,बैंकों के द्वारा लोन,क्रेडिट कार्ड के द्वारा कर्ज़ दिया जा रहा है जो कि आवयकता रहने पर या अनावश्यक रूप से कर्ज़ लेने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही है।

इस मंच से मैं उन समस्त पीड़ीत आत्माओं की पीड़ा को व्यक्त करने के साथ-साथ इस भयानक दोष से मुक्ति के उपाय सुझाने की चेष्टा करूँगा।

आवश्यकता-
व्यापार,व्यवसाय में उन्नति की संभावना से कर्ज़ लिया जाता है। परन्तु व्यापार में प्रतिद्वंद्विता के कारण,बाजारभाव गिरने के कारण,अपेक्षित प्रगति न होने के कारण लाभ के बजाय हानि हो जाती है। लिया गया कर्ज़ समय के साथ-साथ ब्याज के कारण बढ़ते जाता है। रुपए की क्रय क्षमता कम होने के कारण भी वास्तविक कर्ज़ बढ़ते जाता है।
कृषि हेतु जो कर्ज़ लिया जता है वह और अधिक खतरनाक है क्योंकि-1. इसकी ब्याज दर अन्य कर्ज़ से अधिक होती है। 2.कृषि उपज का मूल्य निर्धारण उत्पादक के हाथों में नहीं होता बल्कि मूल्य सरकारें तय करती हैं जो कि लागत की दृष्टिकोण से कम होता है। कृषि संसाधनों जैसे-पानी,खाद,कीटनाशक,महंगे बीज, मज़दूरी की दर,मशीनों का किराया सदैव बढ़ते रहता है। अधिक उत्पादन से कीमत का गिरना,कभी-कभी नकली खाद,बीज एवं दवाएं उपयोग करने से उत्पादन तो कम होता ही है बल्कि कर्ज़ अदायगी का समय अगले फसल तक के लिए टल जाता है ।
कर्ज़ लेने की आवश्यकता-कर्ज़ लेने का मनोवैज्ञानिक कारण अधिक लाभ कमाना,प्रतिद्वंदी से आगे बढ़ने की भावना, नए प्रयोग से लाभ कमाने की इच्छा,शानो शौकत से बच्चों का विवाह करने की इच्छा,लम्बी बीमारी का इलाज़ करने और महंगी उच्च शिक्षा आदि हैं।

कर्ज़ लेने का मूल कारण स्वयं के पास पर्याप्त पैसे न होना है। यह कई कारणों से हो सकता है जैसे-परिवार का बढ़ना,परिवार का ढाँचा और उसकी आवश्यकताएँ साल दर साल बढ़ती जाती हैं लेकिन मौज़ूदा आमदनी में उतना लचीलापन नहीं रहता। आमदनी की दर से व्यय की दर का आगे रहना। अनियमित व्यय या आकस्मिक व्यय जैसे- आकस्मिक यात्रा, आवश्यक यात्रा,स्वास्थ्य समस्या, चिकित्सा व्यय,अनावश्यक व्यय,व्यसन,सोसायटी मेन्टेनेन्श आदि कारणों से हमरे पास पर्याप्त पैसे नहीं बच पाते और कोई बड़ा खर्च आ जाने पर कर्ज़ या उधारी(जो कि बहुत कम मिलता है)का सहारा लेना पड़ता है। बाजार की मौज़ूदा प्रवृत्ति घर पहुँच् सेवा(कीमत+डिलीवरीचार्ज),किस्तों पर उपभोक्ता सामग्री मिल जाने से नियमित आमदनी का एक हिस्सा नियमित रूप से निकल जाता है।
कर्ज़ से कैसे बचें-
पास में पर्याप्त पैसे हो तो कर्ज़ कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी । बीमारी में खर्च करने के बजाय बीमारी से सुरक्षा में खर्च कीजिए। अपनी धन संबंधि शिक्षा को बढ़ाईए क्योंकि इसकी कमी से ही आपकी आर्थिक स्थिति बिगड़ती है।
कुछ सरल उपाय ये हैं-
इनका ध्यान रखें-
"मितव्ययिता बचत की जननी है।" अर्थात् कम से कम व्यय करने की आदत से बचत करने की प्रवृत्ति बढ़ती है जो कि हमेशा फ़ायदेमंद होती है।
"बचत किया गया धन कमाए गए धन के बराबर होता है।
"गरीब नहीं होना चाहते तो गरीबों की तरह खर्च करना छोड़िए।"अर्थात् अमीर् बनना चाहते हैं तो अमीरों की तरह संतुलित खर्च करने की आदत डालें ताकि बचे हुए धन का अच्छा निवेश किया जा सके।
"अच्छा निवेश अमीरी का सुत्र है।"
बेबीलोन के सबसे अमीर आदमी का संदेश-"अपनी आमदनी (दैनिक,मासिक या साप्ताहिक) को दस भागों में बांटकर सबसे पहले एक भाग स्वयं के लिए,दो भाग वर्तमान तथा भविष्य के खर्चों या कर्ज़ उतारने के लिए तथा सात भाग परिवार के नियमित खर्च के लिए रखना चाहिए।"
पुनःस्वयं के लिए रखे एक भाग को किसी भी हालत में खर्च् न करें यह निवेश किया जानेवाला धन है। निवेश् के लाभांश को कभी खर्च् न करें बल्कि इसका पुनर्निवेश करें यही अमीरी का राज़ है।
बिना विशेषज्ञ की सलाह लिए निवेश् न करें।
बचाए गए दो भाग वर्तमान तथा भविष्य के खर्च या व्यय हैं इन्हें बचत मानने की गल्ती न करें। परिवार का दैनिक या मासिक खर्च सात भाग से अधिक न हो इसका हर संभव प्रयास करें;यदि ऐसा कर लेते हैं तो बाकि समस्यायें अपने आप दूर हो जाएंगी। रॉबर्ट टी.कियोसाकी के अनुसार-"लोगों की जिन्दगी हमेशा डर और लालच इन्हीं दो भावनाओं से चलती है। उन्हें अगर अधिक पैसा दे भी दें तो वे अपना खर्च बढ़ा लेंगे।"
स्टीले कहते हैं-“Economy in our affairs has the same effect upon our fortunes which good breeding has upon our conversation.”
“Shame of poverty makes one go everyday a step nearer to it; and fear of poverty stirs up one to make everyday some further progress from it.”
“Who believes in moderation of desires is the best of the world.”

यह सच है कि पुस्तक पढ़कर कोई अमीर नहीं बनता फिर भी ऐसी पुस्तकोंमें कुछ मौलिक ज्ञान रहता है जिनका उपयोग कर उस रास्ते में कुछ कदम जरूर चला जा सकता है ऐसी ही एक पुस्तक है 'बबीलोन का सबसे अमीर आदमी'जिसमें कर्ज़ से मुक्त होने का बहुत ही कारगर उपाय बताया गया है आपको जरूरत हो और मिले तो अवश्य पढ़िए।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

तेते पावं पसारिये जेती लम्बी सोर,
यह कहावत हम ने बचपन मे पढी थी,फ़िर हमारे बुजुर्गो ने भी कहा हे,जो पास हे उसी मे गुजारा करना सिखो, मेरा जिन्दगी का यही मूल्मन्त्र हे,
उतने पांव पसरिये जितनी आप की चादर हे,ज्यादा पांव पसारो गे तो उस चादर को भी खो दो गे.जो अभी आप के पास हे.