Monday, January 21, 2008

संत कबीर अमृत वाणी

श्री सद्गुरुवे नमः
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागुं पांए।
बलिहारी गुरु आपकी जिन्ह गोविन्द दियो बताए॥
महानुभाव,
सन्त कबीर अमृतवाणी श्रृंखला के प्रारंभ में मैं सर्वप्रथम सद्गुरु कबीर साहब के श्री चरणों में प्रथम पुष्प के रुप में उनकी वाणी को सरल शब्दों में भारतवर्ष ही नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व के मानव कल्याण के लिए आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
हम इस आपाधापी से भरे संसार में अपने बहुमूल्य जीवन का थोड़ा कालांश सन्त शिरोमणि कबीर साहेब की अमृतवाणियों का चिन्तन करने में लगायें तो नित्यप्रति की दुविधाओं,चिन्ता और शोक के संताप से मुक्त हो सकते हैं।
जो भी महानुभव कबीर वाणी की इस श्रृखला पर दृष्टिपात करेंगे वे अपने आपको किसी न किसी प्रकार के कष्टसे मुक्त होता हुआ या समस्याओं से दूर जाता हुआ महसूस करेंगे।
वर्तमान् विश्व परिदृश्य में नस्लवाद,जातिवाद,और साम्प्रदायिक आतंकवाद की आग मानव की मानवता को भष्मिभूत कर रही है,धन के प्रति मोह और् भौतिकतावाद व्यक्ति को अंधा किए दे रही है ॑मानवता ॓ किसी कोने में गठरी बनी बैठी है,विसंगति और शोषण के अंधकार में संत कबीर की वाणियों में उनका समाधान दिखाई दे रहा है।यदि आप दृष्टि
को सर्वव्यापकता और सम्पूर्णता से दृष्टिपात करने परकिसी प्रकार की समस्या नहीं पाते हैं तो भी संत कबीर की वाणियां मानव मात्र के आत्मिक उत्थान तथा कल्याण के लिए एक प्रकाशस्तंभ प्रतीत होता है।
आइए प्रथम पुष्प की सुवास से अपनी अंतरात्मा को सुवासित क्रने का प्रयास करते हैं ॒
गुरु गोविन्द दो ऊ खड़े ॒
रहस्यवादी सन्त कवि कबीरदास जी स्वयं पंथ प्रवर्तक होने के बावज़ूद सद्गुरु की महत्ता को प्रकाशितकर रहे हैं। वे कहते हैं कि मेरे सामने सद्गुरु और गोविन्द अर्थात् ईश्वर दोनों एक साथ खड़े हैं और मैं असमंजस में हूं कि किसकी चरण वन्दन पहले करूँ। तत्पश्चात कबीर दास जी स्वयं इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि ईश्वर और गुरु में गुरुकी वंदना पहले करनी चाहिए क्योंकि सद्गुरु के ज्ञान के प्रकाश के बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती । गुरु शब्द का अर्थ ही है गु अर्थात् अंधकार और रु अर्थात् प्रकाश। जो अज्ञानता रुपि अंधकार से ज्ञान रुपि प्रकाश का बोध करा सके वही गुरु है।
भारतीय दर्शन के अनुसार गुरु चार पुरुषार्थों में धर्म अर्थ कम और मोक्ष अर्थात् मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग बताते हैं। यहाँ यह बात ध्यान रखने की है कि सद्गुरु हमेशा सद्गुरु होते हैं वे किसी जाति,धर्म,सम्प्रदाय,देश या काल से बंधे नहीं होते चाहे वे प्रभु ईसामसीह,पैगम्बर हज़रत मुहम्मद साहब,गुरुनानकदेव जी,गौतमबुद्ध,भगवान महावीर,शेख फ़रीद,संत कबीर हों या गुरुघासीदास ये सभी महात्मा जीते जी मोक्ष या मुक्ती प्राप्त कर पूरे संसार को मानवता का पाठ पढ़ाया।
आज यह संसार इन्हीं महान आत्माओं के सद्प्रयासों और सद्ज्ञान से आलोकित हो रहा है।ये सभी धर्म प्रवर्तक गुरु ही हैं जो अपनी शिक्षा से हमें सांसारिक् बंधनों से,मोह माया के बंधनों से छुटकारा पाने और उससे ऊपर उठने की राह बताते हैं ।
मैं एक बार फिर कहना चाहूँगा कि ये सभी गुरु जीते जी निर्वाण या मुक्ति को प्राप्त हुए हैं और एक ही चीज़ को पाया है कि ईश्वर या परमसत्ता एक ही है जिसकी शक्ति से सम्पूर्ण ब्रह्मांड का संचालन हो रहा है। सभी गुरु अन्त में एक ही पद निर्वाण या मुक्ति का पद प्राप्त करते हैं। उन सभी का कथन उस एक पर जाकर केन्द्रित हो जाता है कि "सत्य एक है,ईश्वर एक है."
प्रायः सभी पंथों में समयानुसार विधिविस्तार हो गई है जो कि देश काल के अनुसार बहुमार्गी होने के कारण अनेकता का आभास कराते हैं।
पुनः सन्त कबीर की वाणी पर आते हैं ॒
गुरु गोविन्द दो ऊ खड़े काके लागूं पाएं...
प्रिय मित्रों गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ कहा गया है,क्यों? क्योंकि वे हमें इसी जन्म में ईश्वरत्व प्राप्ति का मार्ग बताते हैं । मनुष्यों में ईश्वरीय गुणों का विकास कर वे हमें उस अन्तिम ऊंचाई तक पहुँचाना चाहते हैं जिसके आगे और ऊँचाई न्हीं है। सभी गुरु सत्य आचरण की शिक्षा देते हैं,सभी परोपकार की शिक्षा देते हैं,चोरी न करने की,अच्छे कार्यों में लगे रहने की शिक्षा देते हैं।अतः हमें सभी गुरुओं का समान रुप से वन्दना करनी चाहिए । जब सभी गुरु एक ही परमतत्व को पाने की शिक्षा देते हैं तो कोई छोटा या बड़ा नहीं है। हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं इसलिए मानव मात्र में आपसी भाईचारा का गुण विकसित हो,विश्वबंधुत्व का विकास हो यही वर्तमान विश्व की परम आवश्यकता है।

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